हम करें राष्ट्रनिर्माण



हमारे युवा वर्ग को विरासत में जो भारत मिलने वाला है उसकी छवि उत्साह वर्धक नहीं है। सन् 1947 में भारत और भारतवासी विदेश दास्ता से मुक्त हो गये। भारत के संविधान के अनुसार हम भारतवासी प्रभुता सम्पन्न गणराज्य के स्वतन्त्र नागरिक है। परन्तु विचारणीय यह है कि जिन कारणो ने हमें लगभग 1 हजार वर्षो तक गुलाम बनाये रखा था। क्या वे कारण खत्म हो गये है? जिन संकल्पो को लेकर हमने 90 वर्षो तक अनवरत् संघर्ष किया था क्या उन संकल्पो को हमने पूरा किया है? हमारे अन्दर देश भक्ति का अभाव है। देश की जमीन और मिट्टी से प्रेम होना देशभक्ति का प्रथम लक्षण माना जाता हैै। भारत हमारी माता है उसका अंग- प्रत्यंग पर्वतो, वनो नदियो आदि द्वारा सुसज्जित है उसकी मिट्टी के नाम पर हमें प्रत्येक बलिदान के लिए तैयार रहना चाहिए। जैसे महाराणा प्रताप ,छत्रपति शिवाजी से लेकर अशफाक उल्लाह खाॅ, भगत सिंह, महात्मा गांधी आदि वीर बलिदानियो की परम्परा रही ,परन्तु अब यह परम्परा हमें प्रेरणा प्रदान नहीं करती। आज हम अपने संविधान मे भारत को इंडिया कहकर गर्व का अनुभव करते हैं, और विदेशियों से प्रमाण पत्र लेकर गौरवान्वित होने का दम भरते है। हमारे स्वतन्त्रता आन्दोलन को जिस भाषा द्वारा देश मुक्त किया गया, उस भाषा हिन्दी को प्रयोग में लाते हुए लज्जा (शर्म) का अनुभव होता है। अंग्रेजी भक्त भारतीयों की दास्ता को देखकर दुनिया हम पर हँसती है। वह सोचती है कि भारत गूँगा है जिसकी कोई अपनी भाषा नहीं है उसको तो परतन्त्र ही बना ही रहना चाहिए बात ठीक है विश्व में केवल भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ के राजकाज में तथा तथाकथित कुलीन वर्ग में एक विदेशी भाषा का प्रयोग किया जाता है। आप विचार करें कि वाणी के क्षेत्र में आत्महत्या करने के उपरान्त हमारी अस्मिता कितने समय तक सुरक्षित रह सकेंगी। राजनीति के नाम पर नित्य नए विभाजनो की माँग करते रहते है। कभी हमे धर्म के नाम पर सुरक्षित स्थान चाहिए तो कभी अल्पसंख्यको के वोट लेने के लिए संविधान में विशेष प्रावधान की माँग करते हैं। एक वह युग था जब सन् 1905 में बंगाल के विभाजन होने पर पूरा देश उसके विरोध में उठ खड़ा हुआ था। परन्तु आज इस प्रकार की दुर्घटनाएं हमारे मर्म का स्पर्श नहीं करती हैं। सन् 1947 में देश के विभाजन से सम्भवतः विभाजन-प्रक्रिया द्वारा हम राजनीतिक सौदेबाजी करना सीख गए हैं। यदि ऐसा नही है तो जागों और कश्मीर को अलग होने से रोको और डाॅ0 मनमोहन सिंह एवं फारूक अब्दुल्ला से पूछें की स्वायत्तता क्या बीमारी है। जो स्वायत्तता के लिए बड़े लच्छेदार ढंग से कहते है कि ’कश्मीर के मूल लोगो की भवानों को समझतें हुए कश्मीर को स्वायत्तता दे देनी चाहिए‘ और डाॅ0 मनमोहन सिंह कहतें है ’कश्मीर को जल्द ही स्वायत्तता दे दिया जायेगा’। स्वायत्तता एक ऐसी बीमारी है जो कश्मीर को हमसे अलग कर देने का एक षड़यंत्र (साजिस) है। हम भारतीय हमेशा से ही कश्मीर को स्वर्ग कहतें रहें है, यदि कश्मीर को भारत से अलग करने बात भी किसी ने कही तो देश के हर नागरिक को एक साथ खडें होकर विरोध करना होगा। हमें तो डाॅ मनमोहल सिंह चीन के एक एजेट की रूप में नजर आते है क्योंकि चीन कहा था की भारत को जितने राज्य है उतने भाग में बाट दिया जाना चाहिए (चीन एक वेबसाइड पर लिखा था )। कही इसकी शुरूवात कश्मीर से तो नही हो रही है। यदि आप हमारी बात से सहमत हैं तो अखण्ड भारत को खण्ड खण्ड होनें से रोकों और आज ही सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत प्रधानमंत्री से पूछें की जिस प्रकार को कश्मीर को स्वायत्तता देनी बात करतें क्या उसी प्रकार छतीसगढ़, झारखण्ड, असम को नकस्लीयों को दे देगें और महाराष्ट्र राज ठाकरे को दे देगें। भारत में व्याप्त स्वार्थपरता तथा संकुचित मानसिकता को लक्ष्य करके एक विदेशी पत्रकार ने एक लिख था कि भारत के बारे में लिखना अपराधियों के बारे में लिखना है। आपातकाल के उपरान्त एक विदेशी राजनयिक ने कहा था कि भारत को गुलाम बनाना बहुत आसान है, क्योंकि यहाँ देशभक्तो की प्रतिशत बहुत कम है। हमारे युवा वर्ग को चाहिए कि वे संघठित होकर देश-निर्माण एंव भारतीय समाजिक विकास की योजनाओं पर गम्भीरतापूर्वक चिन्तन करें उन्हे समझ लेना चाहिए कि लीडर ही बदलव लता है की सोच की अपनाना होगा। हमें आगें आना हो और ये सोच को छोडना हो की इतना बडा भारत हमसे क्या होगा याद रखें एक व्यक्ति भारत को बदल सकता है अवश्कता तो साकारत्मक सोच की। नारेबाजी और भाषणबाजी द्वारा न चरित्र निर्माण होता है और न राष्ट्रीयता की रक्षा होती है। नित्य नई माँगो के लिए किये जाने वाले आन्दोलन न तो महापुरुषो का निर्माण करते है और न स्वाभिमान को बद्धमूल करते हैं। आँखे खोलकर अपने देश की स्थिति परिस्थिति का अध्ययन करें और दिमाग खोलकर भविष्य-निर्माण पर विचार करें। पूर्व पुरुषो को प्रेरणा-स्त्रोत बनाना सर्वथा आवश्यक है। परन्तु उनके नाम की हुण्डी भुनाना सर्वथा अनुचित होने के साथ अपनी अस्मिता के साथ खिलवाड़ करना है। देश की अखण्डता की रक्षा करने में समर्थ होने के लिए हमें स्वार्थ और एकीकरण करके अपने व्यक्तित्व को अखण्ड बनाना होगा। देश की स्वतंत्रता के नाम पर मिटने वाले भारतवीरों नें देशभक्ति को व्यवसाय कभी नहीं बनया था। हमें उनके चरित्र व आचरण की श्रेष्ठता को जीवन में अपनाना होगा, आज देश की प्रथम आवश्यकता है कि हम कठोर परिश्रम के द्वारा देश के निर्माण मे सहभागी बनें।




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