मद्यनिषेद की करो तैयारी, आ रहे है श्रेष्ठ नर-नारी
मद्यनिषेद की करो तैयारी, आ रहे है श्रेष्ठ नर-नारी
शराब बन्दी कब होगी...?
भारतीय संविधान के आधार पर न्याय दिलाने वालों से अपेक्षा है कि राष्ट्रहित में मद्यनिषेद (शराब बन्दी) कानून का पालन करें।
भारतीय संविधान की धारा-47 में भारत में मादक पदार्थों को वर्जित माना हैं। फिर कैसे शराब का प्रचलन सरकार की ओर से किया जा रहा हैं, जो स्पष्टतः गैर कानूनी हैं, संविधान का उल्लंघन हैं।
जनता को पथभ्रष्ट करके और और उसके चरित्र को नरूट करके की गयी कमाई को समाज सुधारकों ने ‘पाप की कमाई’ माना है।
महात्मा गाधी के यह शब्द आज भुला दिये गये है। क्या गाॅधी का नाम जपने वाली सरकार इसका पालन करेंगी-‘‘मैं शराबखोरी को चोरी और शायद व्यभिचार से भी अधिक निन्दनीय समक्षता हूॅं। क्यांेकि यह अकसर दोनांे की जननी होती हैं। अगर मुझे एक घण्टे के लिए सारे भारत का तानाशाह बना दिया जाये, तो पहला काम मैं कंरूगा कि तमाम शराबखानो को मुआवजा दिये बिना ही बंद करा दूगा।
स्वंतत्र भारत में मद्य निषेद की नीति को राष्ट्रीय नीति के रूप में स्वीकार किया गया हैं और भारतीय संविधान के भाग-4 की धारा-47 में मद्यनिषेद के लक्ष्य को कानून बनाया गया हैं,
जो इस प्रकार हैं
‘‘राज्य अपनी जनता के पोषक-भोजन और जीवन स्तर को ऊॅचा करनें तथा सार्वजनिक सुधार कोू अपने प्राथमिक कत्र्तव्यों में मानेगा और विशेषतया मादक पेयों और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नशीली औषधीय प्रयोजन के अतिरिक्त उपभोग का प्रतिषेध करने का प्रयास करेगा।’’
इसका अभिप्राय यह हैं कि शासन की शतप्रतिशत कोशिश एवं जबाब देही यह रहेगी गयी कि लोगों का स्वास्थ्य सुधरे, उनका रहन-सहन का स्तर ऊॅचा हो और अविलम्ब शराब आदि पेयों पर रोक लगा दी जाय।
इससे ज्ञात होता हैं कि स्वंत्रत भारत के डा भीमराव अम्बेडकर आदि संविधान निर्माता इस बात को स्वीकार करते थे कि जन स्वास्थ्य एवं जनजीवन के स्तर को समुन्नत बनाने की दृष्टि से मद्यनिषेद आवश्यक हैं।
मांगः- शराब/मदिरा की बिक्री, सेवन, रख-रखाव गैरकानमनी एवं मजहब विरोधी हाने से सरकार के विरूद्ध अभियोग चलाया जाय एवं उल्लंघनवर्ताओं को कठोर कारावास/मृत्युदंड की सजा दी जाये। ऐसा होते ही तमाम समस्यायें खत्म हो जायेगी।
ज्वलन्त प्रश्नः- भारत सरकार गैरकानूनी (राष्ट्रविरोधी, जनविरोधी, धर्मविरोधी) शराब/मदिरा आदि का कारोबर करनें में कोई अधर्म/गैरकानूनी महसूस नहीं करती फिर ऐसी स्थिति में क्या मतदाताओं को अपने आस्थाओं (धर्म आदेशों) के विरूद्ध जाकर वोट देने का अधिकार हैं? यदि नही तो पहले शराब बंदी फिर मतदान......!
कृपया इनकी भी सुनें:- क्या राजस्व प्राप्ति के लिए हम ही लोग मिले थे.....! शराबियों की दुःखी औरतें एवं बेसहारा हुए रोते बिलखते बच्चों की बढ़ती जा रही जनसंख्या का करूण क्रन्दन.....! आर्तनाद...! कुछ मुट्ठी भर मद्यपान निर्माताओं को अनैतिक लाभ पहुॅचाकर सम्पूर्ण राष्ट्र की जनता को दरिद्र, गरीब, कंगाल, अस्वस्थ्य बनाने में हमारी सरकार क्यों रूचि दिखा रही हैं.......?
जय हिन्द जय भारत
आपका अपना
रवि शंकर यादव
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