आजाद भारत में अब भी 'आजादी' की जरूरत
हमारा देश आजाद है और हम भी। लेकिन अब भी कई तरह की गुलामी ने हमें जकड़ा हुआ है। बहुत-सी ऐसी बुराइयां हैं, जिसने जंजीर की तरह हमारे पैर बांध रखे हैं, जो विकास की राह में रोड़ा हैं और जिनसे हमें आजाद होने की सख्त जरूरत है। आज वर्ल्ड फ्रीडम डे है। हमने अलग-अलग फील्ड के जाने-माने लोगों से पूछा कि आजाद भारत में हमें किस गुलामी से आजादी चाहिए।
विष्णु खरे, साहित्यकार : हमारे पास जो आजादी है, यह आजादी का पहला चरण है। अगर इसे एक बच्चा माना जाए तो इस घुटने के बल चलने वाले बच्चे ने खड़े होकर बस कुछ डग ही भरे हैं। अभी इसे दौड़ना बाकी है। इसके लिए जाति-पाति, सांप्रदायिकता, गैर बराबरी, अंधविश्वास, भ्रष्टाचार और अन्याय से आजादी की जरूरत है। पर्यावरण को दूषित करने की मानसिकता से भी हमें आजाद होना होगा। आधुनिकता की अंधी दौड़ भी हमारे पैरों को जकड़े हुए है। इस जंजीर से भी हमें आजादी चाहिए।
कुलदीप नैयर, वरिष्ठ पत्रकार : हिंदुस्तान हमेशा से उसूलों और परंपराओं के मामले में बहुत धनी रहा है। लेकिन अब हम लोग अपने उसूलों से डिग गए हैं। दौलत की चकाचौंध और सत्ता के नशे में उसूलों से मुंह मोड़ रहे हैं। इसलिए आपाधापी बढ़ गई है। हम जाति के नाम पर, धर्म के नाम पर, क्षेत्र के नाम पर बंट रहे हैं। वह मान्यताएं और मूल्य खत्म हो रहे हैं जो हमें एक सूत्र में पिरोती थीं। हमें उन सभी वजहों से आजादी चाहिए जो हमें अपने उसूलों से डिगा रही हैं।
राजेंद्र सिंह, मैग्सेसे अवॉर्ड विनर : असली आजादी वह होती है जिसमें इंसान सादगी से सांस्कृतिक विविधताओं का सम्मान करते हुए जी सकता है। अभी हमें जमीर की आजादी नहीं मिली है। लड़का-लड़की के बीच अभी भी भेदभाव हो रहा है। हमें बराबरी की आजादी और सांस्कृतिक-सामाजिक आजादी की जरूरत है। बाजारू साइंस और टेक्नॉलजी ने प्राकृतिक स्रोतों का अति शोषण किया है, जिससे आजादी दिलाने की जरूरत है।
जावेद अख्तर, गीतकार : गरीबी हमारे देश के विकास की राह में सबसे बड़ी बाधा है। हमें गरीबी और अशिक्षा से आजादी चाहिए। करप्शन की जड़ें लगातार फैलती जा रही हैं। इस जकड़न से हमें मुक्ति चाहिए। जाति, क्षेत्र, भाषा के नाम पर जो भेदभाव है, उससे आजाद हुए बिना हम कभी आगे नहीं बढ़ सकते, सच्चे अर्थ में आजाद नहीं हो सकते हैं।
बी.बी. भट्टाचार्य, वीसी, जेएनयू : जब तक गरीबी से आजादी नहीं मिलती तब तक इस आजादी का फायदा नहीं उठाया जा सकता। सार्वजनिक जीवन में गैरजिम्मेदार रवैये से आजाद होने की जरूरत है। हम लोकतंत्र में जी रहे हैं लेकिन राष्ट्रीय भावनाओं की बजाय जातिगत, क्षेत्रगत भावनाएं हम पर हावी हो रही हैं। इन भावनाओं से मुक्ति चाहिए। उत्तर भारतीयों को मुंबई में काम करने से रोका जा रहा है, जम्मू-कश्मीर और नॉर्थ ईस्ट में हम काम तो कर सकते हैं लेकिन बस नहीं सकते, हमें ऐसी प्रतिबंधित आजादी की बजाय पूरी आजादी चाहिए।
वृंदा कारत, नेता, सीपीएम : जब तक समाज को भूख से आजादी नहीं मिलती तब तक शोषण का आधार तैयार होता रहेगा। हमें इससे आजादी चाहिए। परंपराओं के नाम पर हो रहे शोषण से आजादी चाहिए। जाति प्रथा, लिंग भेदभाव की जंजीरें तोड़ने की जरूरत है। हमारे समाज को अपराधों से आजादी चाहिए।
मिलिंद देवड़ा, सांसद : हमें इकॉनमिक फ्रीडम की जरूरत है। 1991 के बाद सुधार शुरू हुए, लेकिन देश का हर शख्स इकॉनमिक ग्रोथ का हिस्सा नहीं है। संविधान द्वारा फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन ऐंड स्पीच तो मिली हुई है। पर यह हर जगह नहीं होती। अगर मैं कुछ कहता हूं तो दूसरे दिन विरोधी मेरे घर के बाहर हंगामा करते हैं तो यह एक्सप्रेशन की आजादी नहीं है। हमें सही मायने में यह आजादी चाहिए।
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एक बार फिर लोकतंत्र पर आपातकाल का खतरा हैं (सोनिया का सच)
एक बार फिर लोकतंत्र पर आपातकाल मंडरा पड़ा है. राजमाता एंटोनिया सानिया माइनो (सोनिया गांधी) के सिपहसालारों ने कांग्रेसी गुण्डों, माफियाओं और लोकतंत्र के हत्यारों का आह्वान किया है कि वह देशभर में संघ कार्यालयों पर धावा बोल दे. इसका तत्काल प्रभाव हुआ और कांग्रेसी गुण्डों ने संघ के दिल्ली मुख्यालय पर धावा भी बोल दिया. ठीक वैसे ही जैसे इंदिरा गांधी की मौत के बाद सिखों को निशाना बनाया गया था. हिंसक और अलोकतातंत्रिक मानसिकता से ग्रस्त कांग्रेसी सोनिया का सच जानकर आखिर इस तरह बेकाबू क्यों हो रहे हैं? 10 नवम्बर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने देशभर में अनेक स्थानों पर धरना दिया। संघ सूत्रों के अनुसार यह धरना लगभग 700 से अधिक स्थानों पर हुआ। इनमें लगभग 10 लाख से अधिक लोगों ने भाग लिया। हिन्दू विरोधी दुष्प्रचार की राजनीति के खिलाफ आयोजित इस धरने में संघ के छोट -बड़े सभी नेता-कार्यकताओं ने हिस्सा लिया। संघ प्रमुख मोहनराव भागवत लखनऊ में तो संघ के पूर्व प्रमुख कु.सी.सुदर्शन भोपाल में धरने में बैठे। इसी धरने में मीडिया से बात करते हुए संघ के पूर्व प्रमुख ने यूपीए और कांग्रेस प्रमुख एंटोनिया सानिया माइनो (सोनिया गांधी) के बारे में कुछ बातें कही। इसमें मोटे तौर पर तीन बातें थी - पहली यह कि सोनिया गांधी एंटोनिया सोनिया माइनो हैं। दूसरी यह कि सोनिया के जन्म के समय उनके पिता जेल में थे और तीसरी बात यह कि उनका संबंध विदेशी खुफिया एजेंसी से है और राजीव और इंदिरा की हत्या के बारे में जानती हैं। गौरतलब है कि ये तीनों बातें पहली बार नहीं कही गई हैं। गौर करने लायक बात यह है कि हिन्दू आतंक, भगवा आतंक का नारा बुलंद करने वाले और संघ की तुलना करने वाले कांग्रेसी अपने नेता के बारे में कड़वी सच्चाई सुनकर बौखला क्यों गए? लोकतंत्र की दुहाई देने वाली पार्टी अपनी नेता के समर्थन में अलोकतांत्रिक क्यों हो गई? क्या कांग्रेस स्वभाव से ही फासिस्ट है? कांग्रेस के नेता सुदर्शन के बयान की भाषा पर विरोध जता रहे हैं। लेकिन उनकी कही बातों पर नहीं। भाषा चाहे जैसी भी हो, लेकिन कांग्रेस को मालूम है कि उसके नहले पर संघ का दहला पड़ गया है। कांग्रेस के नेता ने भी तो संघ की तुलना आतंकी संगठन सिमी से की थी। उसी कांग्रेस के नेताओं ने भगवा आतंक और हिन्दू आतंकवादी कह कर संघ को लांछित किया था। यह जरूर है कि कांग्रेस के हाथ में केन्द्रीय सत्ता की बागडोर है। संघ के हाथ में ऐसी
कोई सत्ता नहीं है। कांग्रेस के बड़े नेता और केन्द्र सरकार में कांग्रेस के मंत्री चाहे तो तो जांच एजेंसियों और पुलिस को इशारा कर सकते हैं। उनके एक इशारे पर जांच की दिशा तय हो सकती है। आईबी, सीबीआई और अब एटीएस को ऐसे इशारे कांग्रेसी नेता-मंत्री करते रहे हैं। जैसे गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने पुलिस प्रमुखों की बैठक में भगवा आतंक का सिद्धांत गढ़ने की कोशिश की, जैसे दिग्विजय सिंह ने पत्रकारों से चर्चा में संघ पर आईएसआई से पैसा लेने का आरोप लगा दिया, जैसे किसी लेखक ने पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी पर सीआईए से पैसा लेने का उल्लेख किया ठीक वैसे ही सुदर्शन ने कांग्रेस प्रमुख सोनिया के बारे में कुछ रहस्योद्घाटन कर दिया। कांग्रेस सड़कों पर क्यों उतर रही है? क्यों नहीं सुदर्शन के रहस्योद्घाटन की जांच करवा लेती? देश के सामने राजमाता एंटोनिया सानिया माइनो (सोनिया गांधी) का सच आना ही चाहिए। अगर सुदर्शन झूठे होंगे तो वे या फिर राजमाता एंटोनिया सानिया माइनो (सोनिया गांधी) बेनकाब हो जायेंगी।
लेकिन कांग्रेस राजमाता एंटोनिया सानिया माइनो (सोनिया गांधी) के खिलाफ कांग्रेसी कुछ सुन नहीं सकते, कुछ भी नहीं। कांग्रेस आदर्श घोटाले, कॉमनवेल्थ घोटाले, स्पेक्ट्रम घोटाले, कश्मीर, अयोध्या, नक्सलवाद और हिन्दू-भगवा आतंक के सवाल पर बुरी तरह घिर चुकी है। कर्नाटक में उसका खेल बिगड़ चुका है। बिहार चुनाव में उसकी हालत बिगड़ने वाली है। ऐसे में संघ का देशव्यापी आन्दोलन और जन-जागरण, कांग्रेस के नाक
में दम करने वाला है। संघ काफी समय बाद सड़कों पर आया है। कांग्रेस का घबराना स्वाभाविक है। कांग्रेसियों को सड़कों पर लाने और संघ के मुद्दे को दिग्भ्रमित करने का इससे अच्छा मौका और कोई नहीं हो सकता। इसलिए राजमाता एंटोनिया सानिया माइनो (सोनिया गांधी) के अपनाम के नाम पर कांग्रेसियों को सड़कों पर उताने की तैयारी हो गई। इस तैयारी की भी संघ ने हवा निकाल दी। सुदर्शन के बयान को संघ की बजाए उनका व्यक्तिगत बयान कह कर संघ ने कांग्रेसी विरोध पर पानी फेर दिया। हालांकि आज नही तो कल राजमाता एंटोनिया सानिया माइनो (सोनिया गांधी) के सवाल का जवाब तो कांग्रेस को ढूंढना ही होगा। कांग्रेस चाहे न चाहे उसे देश को यह बताना ही होगा कि सोनिया, एंटोनिया सोनिया माइनो है कि नहीं? वे एक बिल्डिंग कांट्रेक्टर स्टीफेनो माइनो की पुत्री है कि नहीं? माइनों एक रूढ़िवादी कैथोलिक परिवार से है कि नहीं? सोनिया के पिता इटली के फासिस्ट तानाशाह बेनिटो मुसोलिनी के प्रशंसक थे कि नही? क्या सोनिया पर अपने पिता का प्रभाव नहीं था? माइनों ने दूसरे विश्व युद्ध में रूसी मोर्चे पर नाजियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। लेखक व स्तंभकार ए.सूर्यप्रकाश द्वारा संपादित पुस्तक ‘सोनिया का सच’ में यह उद्धृत है कि सन् 1977 में, जब एक भारतीय पत्रकार जावेद लैक ने देखा कि श्री माइनो के ड्राइंगरूम में मुसोलिनी के सिद्धांतों का संग्रह था और उन्होंने अच्छे पुराने दिनों को याद किया। उन्होंने लैक को बताया कि नव-फासिस्टों को छोड़कर लोकतांत्रिक इटली में किसी अन्य राजनीतिक दल के लिए उनके मन में कोई सम्मान नहीं है। उन्होंने भारतीय पत्रकार को कहा कि ये सभी दल ‘देशद्राही’ हैं। कांग्रेस के नेताओं को यह भी बताना चाहिए कि क्या सोनिया माइनो का राजनैतिक संस्कार ऐसे ही वातावरण में नहीं हुआ था? किसी कि भाषा, मर्यादा, संस्कृति, और शैली पर आक्षेप करने के साथ ही
कांग्रेस को देश की जनता के सामने यह सच भी रखने का प्रयास करना चाहिए कि सोनिया माइनो ने राजीव गांधी से विवाह के पूरे पन्द्रह वर्ष बाद 7 अप्रैल, 1983 को भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन किया। आखिर भारतीय नागरिकता के प्रति वे इतने संशय में क्यों रही? कांग्रेस के नेता कांग्रेस राजमाता के प्रति भले ही सिजदा करें, लेकिन वे देश को यह भी बतायें कि सोनिया अपने विवाह के पन्द्रह वर्ष तक अपनी इटालियन नागरिकता के साथ रही, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से वह भारत में मतदान का अधिकार प्राप्त करने के लिए उत्सुक थीं। वे जनवरी, 1980 में ही नई दिल्ली की मतदाता सूची में कैसे शामिल हो गई? जब किसी ने इस धोखाधड़ी को पकड़ लिया और मुख्य निर्वाचक अधिकारी को शिकायत कर दी तब 1982 में उनका नाम मतदाता सूची से निकाला गया। 1 जनवरी, 1983 को वे बिना भारतीय नागरिकता के ही भारत के मतदाता सूची में शामिल हो गई। किसी भी सभ्य, सुसंस्कृत, मर्यादित और कांग्रेसी शैली में कांग्रेस का कोई नेता यह सब देश के सामने क्यों नहीं रखता? जाने-अंजाने ही सही, असामयिक ही सही लेकिन सुदर्शन ने कांग्रेस की दुखती
रग पर चिकोटी काट ली है। संघ भले ही आहत हिन्दुओं को लामबंद करने, अयोध्या, कश्मीर और कांग्रेसी आदर्श भ्रष्टाचार के आगे ‘सोनिया के सच’ को नजरअंदाज कर दे, लेकिन आज नहीं तो कल उसे ही घांदी, नेहरू, माइनो और ‘बियेन्का-रॉल’ परिवार के सच को सामने तो रखना ही होगा। देश के पूर्व प्रधानमंत्री, भावी प्रधानमंत्री और श्यूडो प्रधानमंत्री के परिवार-खानदान के बारे में जानने-समझने का हक हर भारतीय का है। राजीव गांधी के नाना-नानी के साथ उनके दादा-दादी के बारे में देश को मालूम होना चाहिए। देश अपने जैसे भावी प्रधानमंत्री राहुल-प्रियंका (बियेन्का-रॉल) के दादा-दादी की तरह उनके नाना-नानी के बारे में भी कैसे अंजान रह सकता है। आखिर इस परिवार-खानदान, नाते-रिश्तेदारे के धर्म-पंथ बार-बार बदलते क्यों रहे हैं? कांग्रेसी भले ही संघ-सुदर्शन का पुतला फूंके, लेकिन जिनके सामने वे सिजदा करते हैं उनके बारे में अपना ज्ञान जरूर दुरूस्त कर लें। संजय गांधी, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, माधवराव सिंधिया, राजेश पायलट सिर्फ
कांग्रेस के ही नेता, बिल्क देश के भी नेता थे। एलटीटीई ने राजीव गांधी की हत्या की। दक्षिण की राजनेतिक पार्टियां एमडीएमके, पीएमके और डीएमके लिट्टे समर्थक रहे हैं, आज भी हैं लेकिन हत्यारों के समर्थकों के साथ कांग्रेस का कैसा संबंध है? कांग्रेस जवाब दे, न दे देश तो सवाल पूछेगा ही कि जब इंदिरा को गोली लगी तो उनके साथ और कौन-कौन था, किसी एक को भी एक भी गोली क्यों नहीं लगी? घायल अवस्था में देश की प्रधानमंत्री इंदिराजी को पास के अस्पताल की बजाए इतना दूर क्यों ले जाया गया कि तब तक उनके प्राण-पखेरू ही उड़ गए? इन सब स्थितियों में महफूज और दिन-दूनी रात चैगुनी वृद्धि किसकी हुई, सिर्फ और सिर्फ राजमाता एंटोनिया सानिया माइनो (सोनिया गांधी) की! कौन भारतीय है जिसे संदेह नहीं होगा! कांग्रेसी भी अगर अंधभक्ति छोड़ भारतीय बन देखें तो उन्हें भी सुदर्शन के सवालों में कुछ राज नजर आयेगा। वैसे भी सुदर्शन ने कुछ नया नहीं कहा है, बस जुबान अलग है बातें वहीं है जो कभी एस गुरूमूर्ति ने कही, कई बार सुब्रमण्यम स्वामी ने लिखा-कहा, पत्रकार कंचन गुप्ता ने लिखा। आज तक कांग्रेस ने किसी प्रकार के मानहानि का आरोप नहीं लगाया, कभी सड़कों पर नहीं उतरे। कांगेस कभी तो हंगामे की बजाए सवालों का जवाब दे।
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मद्यनिषेद की करो तैयारी, आ रहे है श्रेष्ठ नर-नारी
भारतीय संविधान की धारा-47 में भारत में मादक पदार्थों को वर्जित माना हैं। फिर कैसे शराब का प्रचलन सरकार की ओर से किया जा रहा हैं, जो स्पष्टतः गैर कानूनी हैं, संविधान का उल्लंघन हैं।
जनता को पथभ्रष्ट करके और और उसके चरित्र को नरूट करके की गयी कमाई को समाज सुधारकों ने ‘पाप की कमाई’ माना है।
महात्मा गाधी के यह शब्द आज भुला दिये गये है। क्या गाॅधी का नाम जपने वाली सरकार इसका पालन करेंगी-‘‘मैं शराबखोरी को चोरी और शायद व्यभिचार से भी अधिक निन्दनीय समक्षता हूॅं। क्यांेकि यह अकसर दोनांे की जननी होती हैं। अगर मुझे एक घण्टे के लिए सारे भारत का तानाशाह बना दिया जाये, तो पहला काम मैं कंरूगा कि तमाम शराबखानो को मुआवजा दिये बिना ही बंद करा दूगा।
स्वंतत्र भारत में मद्य निषेद की नीति को राष्ट्रीय नीति के रूप में स्वीकार किया गया हैं और भारतीय संविधान के भाग-4 की धारा-47 में मद्यनिषेद के लक्ष्य को कानून बनाया गया हैं,
जो इस प्रकार हैं
‘‘राज्य अपनी जनता के पोषक-भोजन और जीवन स्तर को ऊॅचा करनें तथा सार्वजनिक सुधार कोू अपने प्राथमिक कत्र्तव्यों में मानेगा और विशेषतया मादक पेयों और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नशीली औषधीय प्रयोजन के अतिरिक्त उपभोग का प्रतिषेध करने का प्रयास करेगा।’’
इसका अभिप्राय यह हैं कि शासन की शतप्रतिशत कोशिश एवं जबाब देही यह रहेगी गयी कि लोगों का स्वास्थ्य सुधरे, उनका रहन-सहन का स्तर ऊॅचा हो और अविलम्ब शराब आदि पेयों पर रोक लगा दी जाय।
इससे ज्ञात होता हैं कि स्वंत्रत भारत के डा भीमराव अम्बेडकर आदि संविधान निर्माता इस बात को स्वीकार करते थे कि जन स्वास्थ्य एवं जनजीवन के स्तर को समुन्नत बनाने की दृष्टि से मद्यनिषेद आवश्यक हैं।
मांगः- शराब/मदिरा की बिक्री, सेवन, रख-रखाव गैरकानमनी एवं मजहब विरोधी हाने से सरकार के विरूद्ध अभियोग चलाया जाय एवं उल्लंघनवर्ताओं को कठोर कारावास/मृत्युदंड की सजा दी जाये। ऐसा होते ही तमाम समस्यायें खत्म हो जायेगी।
ज्वलन्त प्रश्नः- भारत सरकार गैरकानूनी (राष्ट्रविरोधी, जनविरोधी, धर्मविरोधी) शराब/मदिरा आदि का कारोबर करनें में कोई अधर्म/गैरकानूनी महसूस नहीं करती फिर ऐसी स्थिति में क्या मतदाताओं को अपने आस्थाओं (धर्म आदेशों) के विरूद्ध जाकर वोट देने का अधिकार हैं? यदि नही तो पहले शराब बंदी फिर मतदान......!
कृपया इनकी भी सुनें:- क्या राजस्व प्राप्ति के लिए हम ही लोग मिले थे.....! शराबियों की दुःखी औरतें एवं बेसहारा हुए रोते बिलखते बच्चों की बढ़ती जा रही जनसंख्या का करूण क्रन्दन.....! आर्तनाद...! कुछ मुट्ठी भर मद्यपान निर्माताओं को अनैतिक लाभ पहुॅचाकर सम्पूर्ण राष्ट्र की जनता को दरिद्र, गरीब, कंगाल, अस्वस्थ्य बनाने में हमारी सरकार क्यों रूचि दिखा रही हैं.......?
जय हिन्द जय भारत
आपका अपना
रवि शंकर यादव
मोबाइल 09044492606
ई मेल aajsamaj@in.com
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हम करें राष्ट्रनिर्माण
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स्वामी रामदेव जी को Z+ सुरक्षा क्यों नही ? कांग्रेस का हाथ गद्दारों के साथ-2
कांग्रेस का हाथ गद्दारों के साथ !
सच कहें तो गद्दारों की इस पार्टी में सुधार की अब कोई उम्मीद नजर नहीं आती। हमारा मानना था कि निचले सतर पर कॉंग्रेस में वेहद देशभक्त कार्यकरता हैं जिसका प्रभाब पहली पंक्ति के हिन्दूविरोधी-देशविरोधी नेताओं पर एक न एक दिन जरूर पढ़ेगा ।
लेकिन लगता है कि विदेशी इसाई मिसनरी विषकन्या के कांग्रेस पर कब्जे के बाद ऐसा होना लगभग नामुकिन सा हो गया है। जिस गद्दारी की शुरूआत इस भारत विरोधी की गुलाम सरकार ने 2004 में अर्धसैनिकबलों के जबानों को शहीद होने पर मिलने वाले पैसे में कटौती के साथ की वो अब गद्दारी का सतर इस हद तक पहुंच गया है कि भारतीय सैनिकों पर हमले करने बाले पत्तथरबाज आतंकवादियों को UPA सरकार ने पांच-पांच लाख देकर अपनी गद्दारी का प्रमाण देश के सामने रखा।
2004 में अर्धसैनिक बलों के शहीद जवानों के परिबार बालों को मिलने वाली राशि में कटौती करते वक्त कुतर्क दिया गया कि सरकार के पास पैसे नहीं हैं लेकिन आतंकवादियों को देने के लिए सरकार के पास पैसों की कोई कमी नहीं ये इस फैसले से सिद्ध होता है।
लोग कह रहे हैं कि इस विदेशी की कुलाद ने भारत समर्थक RSS की तुलना भारतविरोधी आतंकवादी गिरोह SIMI से कर दी हम पूछते हैं कि इस विदेशी की गुलाम जिस सरकार ने आतंकवादियों को मारने वाले सैनिकों पर केश दर्ज किए ,यहां तक कि पूरी की परी बटालियन को कटघरे में खड़ा कर दिया उस बिदेशी की कुलाद देशभक्त संगठन के वारे में और कह भी क्या सकती है?
सच्चाई यह है कि सेना किसी भी सरकार की ताकत होती है और सेना द्वारा देशहित में उठाए गए हर कदम की कोई भी देशभक्त सरकार समर्थन करती ही है लेकिन यहां मामला दूसरा है।
क्योंकि यह विदेशी इटालियन है इसे भारत की सेना परायी लगती है अपनी नहीं क्योंकि इसकी अपनी सेना तो इटालिन व युरोपियन सेना है । शायद इसीलिए ये विदेशी हर वक्त अपनी गुलाम सरकार पर भारतीय सेना को कमजोर करने वाले कदम उठाने का दबाब बनाती है। इसी दबाब की बजह से आज तक गुजरात से लेकर कशमीर घाटी तक सुरक्षाबलों के दर्जनों जवान जेलों में डाले जा चुके हैं व सैंकड़ों पर मुकदमे दर्ज किए जा चुके हैं।
अब जिसे, भारतीय सेना जो कि सरकार के इसारे पर ही हर काम करती है सिवाय देश की रक्षा के --- से ही डर लगता हो ---जिसे ये सेना अपनी दुशमन लगती हो ----भल उसे प्रधानमंत्री बनने से रोकने वाले देसभक्त संगठन क्या कभी अपने लगेंगे--- नहीं न ।
ऐसे में सोचने वाला विषय यह है कि जिस विदेशी के निशाने पर भारतीय सेना है उसके निशाने पर भला देशभक्त संगठन क्यों नहीं होंगे ?
क्या आपको याद नहीं कि किस तरह पोटा हटवाकर इस भारत विरोधी इसाई ने भारत विरोधी आतंकवादियों की मदद की।मजेदारबात तो यह है कि इस विदेशी का तो भारतीय सर्वोच न्यायालय तक पर भरोसा नहीं बरना ऐसे कैसे हो सकता था कि देश पर हमला करने का जघन्य अपराध कतरने वाला आतंकवादी अफजल आज तक जिन्दा रहता ? वो भी तब जब माननीय न्यायालय ने इस भारतविरोधी आतंकवादी की फांसी की तारीख 19 नम्मवर 2006 तय की हो और आज 19 नम्मवर 2010 आने वाला हो।
अब आप सोचो कि भारतीय सेना व सर्वोच न्यायलय क्या सिर्फ RSS के हैं या फिर सारे देश के ? क्या ये दोनों संघ के इसारे पर काम करते हैं या फिर भारत सरकार के इसारे पर ?
जब इस विदेशी ने इन दोनों ही समानन्नीय संस्थाओं को बदनाम करने के लिए बार-बार सराकर पर दबाब बनाया हो व सरकार ने वार-बार इस दबाब के आगे झुककर इन दोनों ही संस्थाओं का अपमान किया हो तो फिर आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि इस विदेशी के दबाब में ये सरकार किसी भी देशभक्त संगठन को बदनाम करने में कोई कसर वाकी छोड़ेगी ?
आज स्वामीराम देब जी हर भारतीय चाहे वो अमीर हो या गरीब को दिन-रात एक कर स्वस्थ जिन्दगी जीने का तरीका बताने के साथ-साथ भारतीयों को भारतीय संस्कृति का हर वो पहलू याद करवा रहे हैं जिसे वो विदेशी आक्रमणकारियों के गुलामीकाल के दौरान ही यातनाओं के परिणामस्वारूप भुला चुके थे।
आज स्वामीराम देब संसार की एक सबसे बड़े भारतीय संगठन के प्रमुख हैं लेकिन क्या इस विदेशी की गुलाम सरकार ने उन्हें Z+ सुरक्षा पलब्ध करवाई नहीं न क्यों ?
सिर्फ इसलिए क्योंकि जिस स्वामीरामदेब जी का नाम सुनने पर हर देसभक्त भारतीय का सिर गर्व से ऊंचा हो जाता है वही रामदेब इस विदेशी को कभी अपना नहीं लगता ?
आज भारत के इसके जैसे कितने ही शत्रु ऐसे हैं जिन्हें इस विदेशी की गुलाम सरकार देशभक्त भारतीयों की खून-पसीने की कमाई से सुरक्षा उपलब्ध करवाकर इनकी हिन्दू क्रांतिकारियों से रक्षा कर रही है ?
लेकिन गद्दारों की सरदार कब तक खैर मनाएगी एक न एक दिन ये सब गद्दार देशभक्त भारतीयों के हाथों अपने कुकर्मों का अन्जाम हर हाल में भुक्तेंगे ही...
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शत्रु संपत्ति विधेयक-2010, कांग्रेस का हाथ गद्दारों के साथ-1
मुस्लिम सांसदों के दबाव में शत्रु संपत्ति (संसोधन एवं विधिमान्यकरण) विधेयक-2010 में संसोधन स्वीकृत इस देश की राजनीति में घुन लग गया है। राष्ट्रहित उसने खूंटी से टांग दिए हैं। इस देश की सरकार सत्ता प्राप्त करने के लिए कुछ भी कर सकती है। अधिक समय नहीं बीता था जब केन्द्र सरकार ने कश्मीर के पत्थरबाजों और देशद्रोहियों को करोड़ों का पैकेज जारी किया। वहीं वर्षों से टेंट में जिन्दगी बर्बाद कर रहे कश्मीरी पंडि़तों के हित की चिंता आज तक किसी भी सरकार द्वारा नहीं की गई और न की जा रही है। मेरा एक ही सवाल है- क्या कश्मीरी पंडि़त इस देश के नागरिक नहीं है। अगर हैं तो फिर क्यों उनकी बेइज्जती की जाती है। वे शांत है, उनके वोट थोक में नहीं मिलेंगे इसलिए उनके हितों की चिंता किसी को नहीं, तभी उन्हें उनकी जमीन, मकान और स्वाभिमान भरी जिन्दगी नहीं लौटाने के प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। वहीं भारत का राष्ट्रीय ध्वज जलाने वाले, भारतीय सेना और पुलिस पर पत्थर व गोली बरसाने वालों को 100 करोड़ का राहत पैकेज देना, उदार कश्मीरी पंडि़तों के मुंह पर तमाचा है। इतने पर ही सरकार नहीं रुक रही है। इस देश का सत्यानाश करने के लिए बहुत आगे तक उसके कदम बढ़ते जा रहे हैं।
एक पक्ष को तुष्ट करने के लिए सरकार कहां तक गिर सकती है उसका हालिया उदाहरण है शत्रु संपत्ति विधेयक-2010 का विरोध करना फिर उसमें मुस्लिम नेताओं के मनमाफिक संसोधन को केन्द्रीय कैबिनेट द्वारा स्वीकृति देना। कठपुतली (पपेट) प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में बुधवार को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक आयोजित की गई थी। इसमें इसी बैठक में केंद्रीय गृह मंत्रालय के प्रस्ताव पर शत्रु संपत्ति (संसोधन एवं विधिमान्यकरण) विधेयक-2010 में संसोधन को स्वीकृति प्रदान की गई। भारत सरकार द्वारा वर्ष 1968 में पाकिस्तान गए लोगों की संपत्ति को शत्रु संपत्ति घोषित किया गया था, इस संपत्ति पर अब भारत में रह रहे पाकिस्तान गए लोगों के कथित परिजन कब्जा पा सकेंगे। जबकि पाकिस्तान गए सभी लोगों को उनकी जमीन व भवनों का मुआवजा दिया जा चुका है। उसके बाद कैसे और क्यों ये कथित परिजन उस संपत्ति पर दावा कर सकते हैं और उसे प्राप्त कर सकते हैं।
दरअसल पाकिस्तान गए लोगों की सम्पत्ति को प्राप्त करने के लिए पहले से ही उनके कथित परिजनों द्वारा प्रयास किया जा रहा है, क्योंकि 1968 में लागू शत्रु संपत्ति अधिनियम में कुछ खामी थी। उत्तरप्रदेश में यह प्रयास बड़े स्तर पर किए जा रहे हैं। 2005 तक ही न्यायालय में 600 मामलों की सुनवाई हो चुकी है और न्यायालय ने उन्हें वांछित शत्रु संपत्ति पर कब्जा देने के निर्देश दिए हैं। शत्रु संपत्ति हथियाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में 250 और मुम्बई उच्च न्यायालय में 500 के करीब मुकदमे लंबित हैं। मैं यहां कथित परिजन का प्रयोग कर रहा हूं, उसके पीछे कारण हैं। समय-समय पर इस बात की पुष्टि हो रही है कि बड़ी संख्या में पाकिस्तानी और बांग्लादेशी मुसलमान भारत के विभिन्न राज्यों में आकर बस जाते हैं। कुछ दिन यहां रहने के बाद सत्ता लोलुप राजनेताओं और दलालों के सहयोग से ये लोग राशन कार्ड बनवा लेते हैं, मतदाता सूची में नाम जुड़वा लेते हैं। फिर कहते हैं कि वे तो सन् 1947 से पहले से यहीं रह रहे हैं।
शत्रु संपत्ति अधिनियम-1968 की खामियों को दूर करने और कथित परिजनों को शत्रु संपत्ति को प्राप्त करने से रोकने के लिए गृह राज्यमंत्री अजय माकन ने 2 अगस्त को लोकसभा में शत्रु संपत्ति (संसोधन एवं विधिमान्यकरण) विधेयक-2010 प्रस्तुत किया गया था। इस विधेयक के प्रस्तुत होने पर अधिकांशत: सभी दलों के मुस्लिम नेता एकजुट हो गए। उन्होंने विधेयक में संसोधन के लिए पपेट पीएम मनमोहन सिंह और इटेलियन मैम सोनिया गांधी पर दबाव बनाया। दस जनपथ के खासमखास अहमद पटेल, अल्पसंख्यक मंत्रालय के मंत्री सलमान खुर्शीद, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद के नेतृत्व में मुस्लिम सांसदों ने प्रधानमंत्री से मिलकर उनके कान में मंत्र फंूका कि यह विधेयक मुस्लिम विरोधी है। अगर यह मंजूर हो गया तो कांग्रेस के माथे पर मुस्लिम विरोधी होने का कलंक लग जाएगा और कांग्रेस थोक में मिलने वाले मुस्लिम वोटों से हाथ धो बैठेगा। यह बात मनमोहन सिंह को जम गई। परिणाम स्वरूप विधेयक में संसोधन कर दिया गया और उसे पाकिस्तान गए मुसलमानों के कथित परिजनों के मुफीद बना दिया गया। जिस पर बुधवार को पपेट प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई केन्द्रीय कैबिनेट की बैठक में मुहर लगा दी गई। अब स्थित अराजक हो सकती है सरकार से उन सभी ऐतिहासिक और बेशकीमती भवनों व जमीन को ये कथित परिजन छीन सकते हैं, जो अभी तक शत्रु संपत्ति थी। जबकि इनका मुआवजा पाकिस्तान गए मुसलमान पहले ही अपने साथ भारत सरकार से थैले में भर-भरकर ले जा चुके हैं।
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