एक बार फिर लोकतंत्र पर आपातकाल का खतरा हैं (सोनिया का सच)



एक बार फिर लोकतंत्र पर आपातकाल मंडरा पड़ा है. राजमाता एंटोनिया सानिया माइनो (सोनिया गांधी) के सिपहसालारों ने कांग्रेसी गुण्डों, माफियाओं और लोकतंत्र के हत्यारों का आह्वान किया है कि वह देशभर में संघ कार्यालयों पर धावा बोल दे. इसका तत्काल प्रभाव हुआ और कांग्रेसी गुण्डों ने संघ के दिल्ली मुख्यालय पर धावा भी बोल दिया. ठीक वैसे ही जैसे इंदिरा गांधी की मौत के बाद सिखों को निशाना बनाया गया था. हिंसक और अलोकतातंत्रिक मानसिकता से ग्रस्त कांग्रेसी सोनिया का सच जानकर आखिर इस तरह बेकाबू क्यों हो रहे हैं? 10 नवम्बर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने देशभर में अनेक स्थानों पर धरना दिया। संघ सूत्रों के अनुसार यह धरना लगभग 700 से अधिक स्थानों पर हुआ। इनमें लगभग 10 लाख से अधिक लोगों ने भाग लिया। हिन्दू विरोधी दुष्प्रचार की राजनीति के खिलाफ आयोजित इस धरने में संघ के छोट -बड़े सभी नेता-कार्यकताओं ने हिस्सा लिया। संघ प्रमुख मोहनराव भागवत लखनऊ में तो संघ के पूर्व प्रमुख कु.सी.सुदर्शन भोपाल में धरने में बैठे। इसी धरने में मीडिया से बात करते हुए संघ के पूर्व प्रमुख ने यूपीए और कांग्रेस प्रमुख एंटोनिया सानिया माइनो (सोनिया गांधी) के बारे में कुछ बातें कही। इसमें मोटे तौर पर तीन बातें थी - पहली यह कि सोनिया गांधी एंटोनिया सोनिया माइनो हैं। दूसरी यह कि सोनिया के जन्म के समय उनके पिता जेल में थे और तीसरी बात यह कि उनका संबंध विदेशी खुफिया एजेंसी से है और राजीव और इंदिरा की हत्या के बारे में जानती हैं। गौरतलब है कि ये तीनों बातें पहली बार नहीं कही गई हैं। गौर करने लायक बात यह है कि हिन्दू आतंक, भगवा आतंक का नारा बुलंद करने वाले और संघ की तुलना करने वाले कांग्रेसी अपने नेता के बारे में कड़वी सच्चाई सुनकर बौखला क्यों गए? लोकतंत्र की दुहाई देने वाली पार्टी अपनी नेता के समर्थन में अलोकतांत्रिक क्यों हो गई? क्या कांग्रेस स्वभाव से ही फासिस्ट है? कांग्रेस के नेता सुदर्शन के बयान की भाषा पर विरोध जता रहे हैं। लेकिन उनकी कही बातों पर नहीं। भाषा चाहे जैसी भी हो, लेकिन कांग्रेस को मालूम है कि उसके नहले पर संघ का दहला पड़ गया है। कांग्रेस के नेता ने भी तो संघ की तुलना आतंकी संगठन सिमी से की थी। उसी कांग्रेस के नेताओं ने भगवा आतंक और हिन्दू आतंकवादी कह कर संघ को लांछित किया था। यह जरूर है कि कांग्रेस के हाथ में केन्द्रीय सत्ता की बागडोर है। संघ के हाथ में ऐसी
कोई सत्ता नहीं है। कांग्रेस के बड़े नेता और केन्द्र सरकार में कांग्रेस के मंत्री चाहे तो तो जांच एजेंसियों और पुलिस को इशारा कर सकते हैं। उनके एक इशारे पर जांच की दिशा तय हो सकती है। आईबी, सीबीआई और अब एटीएस को ऐसे इशारे कांग्रेसी नेता-मंत्री करते रहे हैं। जैसे गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने पुलिस प्रमुखों की बैठक में भगवा आतंक का सिद्धांत गढ़ने की कोशिश की, जैसे दिग्विजय सिंह ने पत्रकारों से चर्चा में संघ पर आईएसआई से पैसा लेने का आरोप लगा दिया, जैसे किसी लेखक ने पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी पर सीआईए से पैसा लेने का उल्लेख किया ठीक वैसे ही सुदर्शन ने कांग्रेस प्रमुख सोनिया के बारे में कुछ रहस्योद्घाटन कर दिया। कांग्रेस सड़कों पर क्यों उतर रही है? क्यों नहीं सुदर्शन के रहस्योद्घाटन की जांच करवा लेती? देश के सामने राजमाता एंटोनिया सानिया माइनो (सोनिया गांधी) का सच आना ही चाहिए। अगर सुदर्शन झूठे होंगे तो वे या फिर राजमाता एंटोनिया सानिया माइनो (सोनिया गांधी) बेनकाब हो जायेंगी।
लेकिन कांग्रेस राजमाता एंटोनिया सानिया माइनो (सोनिया गांधी) के खिलाफ कांग्रेसी कुछ सुन नहीं सकते, कुछ भी नहीं। कांग्रेस आदर्श घोटाले, कॉमनवेल्थ घोटाले, स्पेक्ट्रम घोटाले, कश्मीर, अयोध्या, नक्सलवाद और हिन्दू-भगवा आतंक के सवाल पर बुरी तरह घिर चुकी है। कर्नाटक में उसका खेल बिगड़ चुका है। बिहार चुनाव में उसकी हालत बिगड़ने वाली है। ऐसे में संघ का देशव्यापी आन्दोलन और जन-जागरण, कांग्रेस के नाक
में दम करने वाला है। संघ काफी समय बाद सड़कों पर आया है। कांग्रेस का घबराना स्वाभाविक है। कांग्रेसियों को सड़कों पर लाने और संघ के मुद्दे को दिग्भ्रमित करने का इससे अच्छा मौका और कोई नहीं हो सकता। इसलिए राजमाता एंटोनिया सानिया माइनो (सोनिया गांधी) के अपनाम के नाम पर कांग्रेसियों को सड़कों पर उताने की तैयारी हो गई। इस तैयारी की भी संघ ने हवा निकाल दी। सुदर्शन के बयान को संघ की बजाए उनका व्यक्तिगत बयान कह कर संघ ने कांग्रेसी विरोध पर पानी फेर दिया। हालांकि आज नही तो कल राजमाता एंटोनिया सानिया माइनो (सोनिया गांधी) के सवाल का जवाब तो कांग्रेस को ढूंढना ही होगा। कांग्रेस चाहे न चाहे उसे देश को यह बताना ही होगा कि सोनिया, एंटोनिया सोनिया माइनो है कि नहीं? वे एक बिल्डिंग कांट्रेक्टर स्टीफेनो माइनो की पुत्री है कि नहीं? माइनों एक रूढ़िवादी कैथोलिक परिवार से है कि नहीं? सोनिया के पिता इटली के फासिस्ट तानाशाह बेनिटो मुसोलिनी के प्रशंसक थे कि नही? क्या सोनिया पर अपने पिता का प्रभाव नहीं था? माइनों ने दूसरे विश्व युद्ध में रूसी मोर्चे पर नाजियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। लेखक व स्तंभकार ए.सूर्यप्रकाश द्वारा संपादित पुस्तक ‘सोनिया का सच’ में यह उद्धृत है कि सन् 1977 में, जब एक भारतीय पत्रकार जावेद लैक ने देखा कि श्री माइनो के ड्राइंगरूम में मुसोलिनी के सिद्धांतों का संग्रह था और उन्होंने अच्छे पुराने दिनों को याद किया। उन्होंने लैक को बताया कि नव-फासिस्टों को छोड़कर लोकतांत्रिक इटली में किसी अन्य राजनीतिक दल के लिए उनके मन में कोई सम्मान नहीं है। उन्होंने भारतीय पत्रकार को कहा कि ये सभी दल ‘देशद्राही’ हैं। कांग्रेस के नेताओं को यह भी बताना चाहिए कि क्या सोनिया माइनो का राजनैतिक संस्कार ऐसे ही वातावरण में नहीं हुआ था? किसी कि भाषा, मर्यादा, संस्कृति, और शैली पर आक्षेप करने के साथ ही
कांग्रेस को देश की जनता के सामने यह सच भी रखने का प्रयास करना चाहिए कि सोनिया माइनो ने राजीव गांधी से विवाह के पूरे पन्द्रह वर्ष बाद 7 अप्रैल, 1983 को भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन किया। आखिर भारतीय नागरिकता के प्रति वे इतने संशय में क्यों रही? कांग्रेस के नेता कांग्रेस राजमाता के प्रति भले ही सिजदा करें, लेकिन वे देश को यह भी बतायें कि सोनिया अपने विवाह के पन्द्रह वर्ष तक अपनी इटालियन नागरिकता के साथ रही, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से वह भारत में मतदान का अधिकार प्राप्त करने के लिए उत्सुक थीं। वे जनवरी, 1980 में ही नई दिल्ली की मतदाता सूची में कैसे शामिल हो गई? जब किसी ने इस धोखाधड़ी को पकड़ लिया और मुख्य निर्वाचक अधिकारी को शिकायत कर दी तब 1982 में उनका नाम मतदाता सूची से निकाला गया। 1 जनवरी, 1983 को वे बिना भारतीय नागरिकता के ही भारत के मतदाता सूची में शामिल हो गई। किसी भी सभ्य, सुसंस्कृत, मर्यादित और कांग्रेसी शैली में कांग्रेस का कोई नेता यह सब देश के सामने क्यों नहीं रखता? जाने-अंजाने ही सही, असामयिक ही सही लेकिन सुदर्शन ने कांग्रेस की दुखती
रग पर चिकोटी काट ली है। संघ भले ही आहत हिन्दुओं को लामबंद करने, अयोध्या, कश्मीर और कांग्रेसी आदर्श भ्रष्टाचार के आगे ‘सोनिया के सच’ को नजरअंदाज कर दे, लेकिन आज नहीं तो कल उसे ही घांदी, नेहरू, माइनो और ‘बियेन्का-रॉल’ परिवार के सच को सामने तो रखना ही होगा। देश के पूर्व प्रधानमंत्री, भावी प्रधानमंत्री और श्यूडो प्रधानमंत्री के परिवार-खानदान के बारे में जानने-समझने का हक हर भारतीय का है। राजीव गांधी के नाना-नानी के साथ उनके दादा-दादी के बारे में देश को मालूम होना चाहिए। देश अपने जैसे भावी प्रधानमंत्री राहुल-प्रियंका (बियेन्का-रॉल) के दादा-दादी की तरह उनके नाना-नानी के बारे में भी कैसे अंजान रह सकता है। आखिर इस परिवार-खानदान, नाते-रिश्तेदारे के धर्म-पंथ बार-बार बदलते क्यों रहे हैं? कांग्रेसी भले ही संघ-सुदर्शन का पुतला फूंके, लेकिन जिनके सामने वे सिजदा करते हैं उनके बारे में अपना ज्ञान जरूर दुरूस्त कर लें। संजय गांधी, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, माधवराव सिंधिया, राजेश पायलट सिर्फ
कांग्रेस के ही नेता, बिल्क देश के भी नेता थे। एलटीटीई ने राजीव गांधी की हत्या की। दक्षिण की राजनेतिक पार्टियां एमडीएमके, पीएमके और डीएमके लिट्टे समर्थक रहे हैं, आज भी हैं लेकिन हत्यारों के समर्थकों के साथ कांग्रेस का कैसा संबंध है? कांग्रेस जवाब दे, न दे देश तो सवाल पूछेगा ही कि जब इंदिरा को गोली लगी तो उनके साथ और कौन-कौन था, किसी एक को भी एक भी गोली क्यों नहीं लगी? घायल अवस्था में देश की प्रधानमंत्री इंदिराजी को पास के अस्पताल की बजाए इतना दूर क्यों ले जाया गया कि तब तक उनके प्राण-पखेरू ही उड़ गए? इन सब स्थितियों में महफूज और दिन-दूनी रात चैगुनी वृद्धि किसकी हुई, सिर्फ और सिर्फ राजमाता एंटोनिया सानिया माइनो (सोनिया गांधी) की! कौन भारतीय है जिसे संदेह नहीं होगा! कांग्रेसी भी अगर अंधभक्ति छोड़ भारतीय बन देखें तो उन्हें भी सुदर्शन के सवालों में कुछ राज नजर आयेगा। वैसे भी सुदर्शन ने कुछ नया नहीं कहा है, बस जुबान अलग है बातें वहीं है जो कभी एस गुरूमूर्ति ने कही, कई बार सुब्रमण्यम स्वामी ने लिखा-कहा, पत्रकार कंचन गुप्ता ने लिखा। आज तक कांग्रेस ने किसी प्रकार के मानहानि का आरोप नहीं लगाया, कभी सड़कों पर नहीं उतरे। कांगेस कभी तो हंगामे की बजाए सवालों का जवाब दे।




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2 Respones to "एक बार फिर लोकतंत्र पर आपातकाल का खतरा हैं (सोनिया का सच)"

Unknown said...

apka lekh logon ki aankh kholne ke liye kafi hai...dhanyvad


December 10, 2010 at 11:25 PM
Jiten said...

Dont call her Rajmata please, do not insult Bhartiya people by calling her Rajmata. Wo gulami pasand Congressiyon ki maata ho sakati hai, sachche Bharat vassiyonki nahi. Baaki aapka lekh bahut achcha hai. Sangh jo bhi kar raha hai, logon ki aankh kholega, aur Gandhi parivar ko desh chchodane ke liya sachche Bharatiya majboor kar degi, kyunki itana corruption aur Bharat virodhi kaarya karane ke baad unhe vaisen to faasin honi chahiye (2G, CWG, Aadarsh, Bofors
ye sab karane ke baad aur kya natija hona chahiye).
Bharat vaasiyon jaago, in nakli Gandhiyon ko bagao.
Jai Hind Jai Bharat!


December 18, 2010 at 9:36 PM

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